Tuesday, December 9, 2008

ताबूत - एपिसोड 24

"खैर छोड़ो इन बातों को. यह देखो, सामने का दृश्य कितना सुंदर है." प्रोफ़ेसर ने सामने देखते हुए कहा.
"तुम्हें यह ऊबड़ खाबड़ पहाडियां सुंदर दिखाई पड़ रही हैं और यहाँ हम लोगों को इतना क्रोध आ रहा है कि यदि ताजमहल भी सामने आ जाए तो हम लोगों को कुरूप महल दिखाई देगा." रामसिंह पूरी तरह झल्लाया हुआ था.
"खैर झल्लाहट तो मुझे भी महसूस हो रही है. लेकिन मैंने किताबों में पढ़ा था कि यदि पहाडियों के नीचे कोई नदी तालाब इत्यादि दिखाई दे रहा हो और उसमें डूबते सूरज का प्रतिबिम्ब दिख रहा हो , आकाश अपनी लालिमा बिखेर रहा हो तो वह दृश्य बहुत सुंदर माना जाता है."
"मुझे तो सबसे अच्छा दृश्य वह लगेगा जब खजाना मेरे सामने होगा." रामसिंह ने कहा.
"मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि या तो हम रास्ता भूल गए हैं या प्रोफ़ेसर ने कहीं से ग़लत नक्शा निकाल लिया है." शमशेर सिंह बोला.
"नक्शा तो ग़लत होने का सवाल ही नहीं. हाँ यह हो सकता है कि हम लोग रास्ता भूल गए हों. मैं एक बार फिर नक्शा देखे लेता हूँ." प्रोफ़ेसर ने जेब से नक्शा निकाला और देखने लगा.
"मेरी तो अब इसमें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है. यह नक्शा तो लग रहा है कि यहाँ का है ही नहीं."
"मरवा दिया प्रोफ़ेसर तूने हमें. मुझे पहले ही डर था कि यह नक्शा खजाने का नहीं है. अब इन पहाडियों से सर टकरायें या तालाब में कूद पड़ें." रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"अरे तो हिम्मत क्यों हार रहे हो." प्रोफ़ेसर ने ढाढस बंधाई, "अभी खजाना मिलने कि हमारी आशाएं जीवित हैं. मैंने थोडी देर पहले कहा था कि ये पहाडियां मिस्र के पिरामिडों से मिलती हैं. अतः उन पिरामिडों की तरह यहाँ भी हमें प्राचीन सभ्यता द्बारा छुपाया गया खजाना मिलना चाहिए."
"तो फिर यहाँ बैठकर अपनी किस्मत को रोने से क्या फायेदा. हमें दोबारा अन्दर चलकर कोशिश करनी चाहिए." शमशेर सिंह ने कहा.
वे तीनों उठ खड़े हुए और दोबारा सुरंग में घुसने लगे. जल्दी ही वे लोग फिर उसी कमरे में पहुँच गए. इस बार वहां रुकने की बजाये वे और आगे बढ़ने लगे. उनका विचार था कि पहाडियों से निकलकर फिर से कोई और रास्ता ढूँढा जाएगा. हो सकता है उस रास्ते से जाने पर खजाना मिल जाए.
कुछ दूर जाने के बाद अचानक उनके सामने एक दोराहा आ गया.
"यह दोराहा कहाँ से आ गया? जब हम लोग आ रहे थे तब तो यह था नहीं." रामसिंह ने कहा.
"यह कैसे हो सकता है कि आने में दोराहा न रहा हो. दोराहा तब भी था लेकिन हम लोग केवल आगे देखते हुए चल रहे थे अतः यह हमें दिखाई न दिया." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किंतु समस्या ये है कि यह कैसे पता चले कि हम लोग किस रास्ते से आये थे?" शमशेर सिंह ने असमंजस के भाव में कहा.
"हाँ. यह तो वास्तव में समस्या है. अगर हम लोगों ने ग़लत रास्ता पकड़ लिया तो शायद यहीं पहाडियों की सुरंगों में भटकते रह जायेंगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"फ़िर क्या किया जाए? कैसे पता लगाया जाए कि कौन सा सही रास्ता है?" रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"ऐसा करते हैं. टॉस कर लेते हैं. यदि हेड आया तो दाएँ ओर और यदि टेल आया तो बाएँ ओर चलेंगे. तुममें से किसी के पास रूपया होगा?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"मेरे पास है. यह लो." कहते हुए रामसिंह ने रूपया दिया.
"यह तो कागज़ का रूपया है उल्लू. टॉस करने के लिए सिक्का चाहिए."
"फ़िर तो सॉरी. हममें से किसी के पास रूपया नहीं है." दोनों ने एक साथ कहा.
"कोई तो सिक्का होगा तुम्हारे पास?"
"वास्तव में हम लोगों के पास कुछ नहीं है. हम लोग यह सोचकर खली हाथ आये थे कि खजाना मिलने पर अपने आप हाथ भर जायेंगे." शमशेर सिंह बोला.
"मेरी जेब में एक चवन्नी पड़ी थी. देखते हैं." कहते हुए रामसिंह ने अपनी जेब टटोली फिर निराशा से सर हिलाया, "लगता है यह वहां पर गिर गई जहाँ मैं कीचड़ में गिरा था."
"तुम लोगों के पास कुछ अक्ल नहीं है." प्रोफ़ेसर ने दोनों को घूरा, "ऐसा करते हैं कि मेरे पास जो किताब है, उससे टॉस कर लेते हैं."

......अगले सिल्वर जुबली एपिसोड में पढ़ें, कुछ ख़ास.

1 comment:

seema gupta said...

अगले सिल्वर जुबली एपिसोड में पढ़ें, कुछ ख़ास.
"ये कथानक इतना रोचक है , और आपने और जिज्ञासा बढा दी है....."

regards