Friday, October 3, 2008

ताबूत - एपिसोड 7

"नक्शा बाद में देखना. पहले यह बताओ कि मेरा क्या होगा. क्या मैं ऐसे ही कीचड़ में लथपथ रहूँ? मेरा सामान भी कीचड़ में सन गया है." रामसिंह ने कहा.

"तुम अपना मुंह तो तालाब के पानी से धो लो. और कपड़े ऐसे ही पहने रहो. जब सूख जाएँ तो सूखी मिटटी झाड़ लेना." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने नक्शा निकाला. कुछ देर टॉर्च के प्रकाश में उसे देखता रहा फिर बोला, "नक्शे में यह तालाब मौजूद है. यानि हम सही रास्ते पर हैं. अब नक्शे के अनुसार हमें दाएँ ओर मुड जाना चाहिए."

फिर वे दाएँ ओर मुड गए. प्रोफ़ेसर ने फिर टॉर्च बुझा दी थी. ताकि बैट्री कम से कम खर्च हो. अभी उस टॉर्च से बहुत काम लेना था. हालाँकि बाकि दोनों इससे सहमत नही थे, लेकिन जब प्रोफ़ेसर ने आगे रहना स्वीकार कर लिया तो वे भी चुप हो गए. और इस तरह अब तीनों की टोली में सबसे आगे प्रोफ़ेसर था.
अचानक प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह के हाथ में कोई चमकती हुई वस्तु देखी, "यह क्या है?" कहते हुए प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह के हाथ पर टॉर्च का प्रकाश डाला. यह एक छोटा सा खंजर था.

"यह मैं ने जंगली जानवरों से बचाव के लिए पकड़ लिया है. अगर कोई जानवर अचानक हमला कर देगा तो उसका पेट इस तरह से चीर कर रख दूँगा." कहते हुए उसने खंजर हवा में लहराया. प्रोफ़ेसर ने जल्दी से अपना सर पीछे खींच लिया वरना खंजर की नोक ने उसकी नाक की नोक उड़ा दी थी.

"क्या तुम इसका इस्तेमाल कर पाओगे? क्योंकि तुम्हारा हाथ तो कांप रहा है. कहीं हडबडाहट में अपने ही न मार लेना." रामसिंह ने कहा.
"चुप रहो. मैं तुम्हारी तरह अनाड़ी नही हूँ." शमशेर सिंह ने क्रोधित होकर कहा.

फिर प्रोफ़ेसर ने दोनों को शांत किया. और वे आगे बढ़ने लगे. अब तक सुबह का उजाला फैलने लगा था. और चिड़ियों के चहचहाने की आवाजें सुनाई पड़ने लगी थीं. इस समय वे ऐसे रास्ते पर चल रहे थे जिसके एक किनारे पर कोई पहाड़ी नदी बह रही थी और दूसरे किनारे पर छोटी मोटी पहाडियों की एक श्रृंखला थी. अचानक प्रोफ़ेसर चलते चलते रूक गया.

"क्या हुआ प्रोफ़ेसर?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"मेरा ख्याल है, यह जगह आराम करने के लिए अच्छी है. हम लोग कुछ देर ठहर कर इस नदी में स्नान करेंगे, फिर आगे बढ़ेंगे."
फिर तीनों ने अपने अपने सामान नीचे रखे और नदी की और बढ़ गए. इस समय नदी के ठंडे पानी ने तीनों को एक नई स्फूर्ति दी और उनकी अब तक की यात्रा की साड़ी थकान उतर गई. जब वे लोग पानी से बाहर निकले तो पूरी तरह ताज़ादम हो रहे थे. उन्होंने अपने सूटकेस से कुछ सैंडविच निकले और नाश्ता करने लगे. रामसिंह ने झोले से स्टोव निकला और उसपर काफी बनाने लगा.

3 comments:

Arvind Mishra said...

अच्छा चल रहा है

seema gupta said...

'DAY BY DAY INTERETSING HOTTA JA RHA HAI MAGAR BHUT SHORT LGTA HAI, AISA LGTA HAI EK BAAR MEY HEE ... HA HA HA BUT I KNOW I HAVE TO WAIT'

REGARDS

अभिषेक मिश्र said...

Kahani kafi rochak hai, agli kadi ka besabri se intejar hai.