"ओह, लगता है वह खतरे में है. आओ रामसिंह." प्रोफ़ेसर ने कहा और वे आवाज़ की दिशा में दौड़ पड़े. फ़िर जब उन्हें शमशेर सिंह दिखाई पड़ा तो वह इस दशा में था कि गोरिल्ला उसकी टांग पकड़े खींच रहा था और शमशेर सिंह दोनों हाथों से पेड़ की एक डाल पकड़े चीख रहा था. खंजर उसके हाथ से छूट कर नीचे गिरा पड़ा था.
प्रोफ़ेसर ने अपनी राइफल निकाल कर हवा में दो फायर किए. गोरिल्ला चौंक कर उनकी और देखने लगा. फ़िर उसने एक साथ तीन मनुष्यों से मुकाबला करना उचित नही समझा और झाड़ियों की तरफ़ भाग गया.
"प्रोफ़ेसर, वह भाग रहा है. गोली चलाओ वरना यदि वह जिंदा रहा तो तो फिर हमें परेशान करेगा." रामसिंह ने कहा.
"गोली कैसे चलाऊं. यह तो नकली राइफल है और केवल पटाखे की आवाज़ करती है. इससे तो एक चिडिया भी नही मारी जा सकती." प्रोफ़ेसर ने अपनी विवशता प्रकट की.
"तो इसको लाने की क्या ज़रूरत थी. असली राइफल क्यों नही लाये?" रामसिंह ने झल्लाकर कहा.
"उसका लाइसेंस कहाँ मिलता. और फ़िर यह भी तो काम आ गई. वरना गोरिल्ला शमशेर सिंह का काम कर डालता." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"ठीक है प्रोफ़ेसर. वास्तव में तुम बहुत अक्लमंद हो." रामसिंह ने कहा. फिर उनहोंने पेड़ की तरफ़ ध्यान दिया जहाँ शमशेर सिंह डाल से चिपटा हुआ आँखें बंद किए थर थर काँप रहा था.
"शमशेर सिंह, अब नीचे उतर आओ. हम लोग आ गए हैं. अब डरने की कोई बात नहीं." प्रोफ़ेसर ने उसे पुकारा.
"क..क्या वह गोरिल्ला भाग गया?" शमशेर सिंह ने आँखें खोलते हुए पूछा.
"हाँ. अब ऊपर से उतर आ डरपोक कहीं का. तू जिससे डर गया था वह तो ख़ुद इतना डरपोक निकला कि हम लोगों की शक्ल देखकर भाग गया." रामसिंह ने कहा.
"वह तुम लोगों की शक्ल देखकर नही भागा था बल्कि राइफल देखकर भागा था. इसलिए ज़्यादा अपनी बहादुरी मत दर्शाओ." शमशेर सिंह ने उतरते हुए कहा.
"अब तुम हमारे साथ ही रहना. वरना फिर किसी खतरे का सामना करोगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.
वे लोग उसके बाद चुपचाप आगे बढ़ते रहे. कुछ दूर जाने के बाद रामसिंह ने कहा, "प्रोफ़ेसर, क्या हम सही रास्ते पर जा रहे हैं?"
"अभी तक तो मेरे ख्याल में सही जा रहे हैं. फिर भी मैं नक्शा देख लेता हूँ." कहते हुए प्रोफ़ेसर वहीँ बैठ गया और जेब से किताब निकालकर नक्शा देखना शुरू कर दिया, "हूँ. अभी तक तो ठीक ही है. लेकिन अब हमें दाएँ ओर मुड़ना पड़ेगा."
उसके बाद प्रोफ़ेसर ने फिर नक्शा जेब में रख लिया और वे लोग दाएँ ओर मुड़कर आगे बढ़ने लगे.कुछ दूर चलने के बाद एकदम से जंगल समाप्त हो गया और सामने पहाडियाँ दिखाई देने लगीं. पहाड़ियों से पहले एक बड़ा सा मैदान था.
"यह आगे तो रास्ता ही बंद है. तुमसे नक्शा देखने में कोई भूल तो नही हो गई?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"नक्शा तो मैंने ठीक देखा था. फिर भी एक बार और देख लेता हूँ." प्रोफ़ेसर ने दोबारा जेब से नक्शा निकाला और देखने लगा.
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विज्ञान कथा में इसके प्रकाशन के बाद यहाँ पर ताबूत का पढना एक नया आनंद प्रदान कर रहा है।
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