Tuesday, April 27, 2021

नादान मुजरिम

 


तड़ाक की आवाज़ के साथ दो तीन थप्पड़ जब आरती के गालों पर पड़े तो उसकी आँखों से बेतहाशा आंसू बहने लगे।

”कमबख्त ! खा खा के मोटी हो रही है और काम एक धेले का नहीं होता। एक गिलास पानी मांगा तो इतना कीमती जग तोड़ कर रख दिया।“ आरती की सौतेली मां रीमा का लहजा गुस्से से काँप रहा था।
”म... माफ कर दो। गलती हो गयी।“ आरती ने हाथ जोड़े।
”गलती हो गयी !“ रीमा ने नकल उतारी, ”महारानी साहिबा कीमती चीज़ों का सत्यानाश करके कहती हैं गलती हो गयी।“ रीमा ने दो तीन हाथ और जमा दिये। अब तक आरती का बाप वहाँ आ गया था।
”आरती! तुम चाहती क्या हो आखिर।“ उसने झुंझलायी आवाज़ में कहा ”क्या मैं दो पल इस घर में चैन से न रहूं। अपनी हरकतें छोड़ दो वरना मैं बहुत सख्ती से पेश आऊंगा।“ कहते हुये वह वापस घूम गया। रीमा भी उसके पीछे पीछे वापस चली गयी थी। अब आरती अपने कमरे में आँसू बहाती हुई अकेली थी। उसे आज अपनी स्वर्गीय मां की बहुत याद आ रही थी जो बचपन में ही उसे अकेला छोड़कर परलोक सिधार गयी थी। सौतेली माँ के जुल्मों ने उसे मानसिक तौर पर बहुत कमज़ोर बना दिया था। पत्ता भी खड़कता था तो वह डर जाती थी।
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एक मोटरसाइकिल बिजली की रफ्तार से सुनसान पहाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी। उसपर बैठने वाली भी कोई बिजली ही लगती थी, जिसके चेहरे पर काला नकाब चढ़ा हुआ था। एक पुलिस जीप उसका पीछा कर रही थी। जीप में सवार इंस्पेक्टर राहुल ने पहले उसे रूकने की वार्निंग दी फिर रिवाल्वर से ताबड़तोड़ उसपर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। लेकिन मालूम होता था कि लड़की की रफ्तार गोली से भी तेज़ है। क्योंकि कोई भी गोली उसका बाल बांका न कर सकी। थोड़ी ही देर में मोटर साइकिल पहाड़ियों के बीच गायब हो चुकी थी। इंस्पेक्टर राहुल जीप रोककर अपने दांत पीसने लगा। इन्स्पेक्टर राहुल की पोस्टिंग जबसे इस शहर में हुई थी यहाँ अपराध काफी कम हो गये थे। लेकिन शहर में एक बला ऐसी चकरा रही थी जिसने हर खास और आम को चकरा दिया था। ऊपर से नीचे तक काले चुस्त लिबास और नकाब में छुपी हूई यह लड़की छलावे की तरह प्रकट होती थी और किसी प्रशासनिक अफसर का कत्ल करके गायब हो जाती थी। आई.ए.एस, आई.पी.एस. या फिर पी.सी.एस. सभी बुरी तरह डरे हुये थे। क्योंकि शहर में चकराती नौकरशाहों की मौत कब उन्हें शिकन्जे में कस ले, कुछ तय नहीं था।।
आज भी इं राहुल इस बला को पकड़ने में नाकाम हो गया था और इस समय मुंह लटकाये अपनी कुर्सी पर बैठा था। उसी समय शहर के प्रसिद्ध दैनिक के क्राइम रिपोर्टर अर्जुन ने वहां प्रवेश किया और कुर्सी खींचकर इं. राहुल के सामने बैठ गया।
”बहुत खूब! पूरे पुलिस महकमे को एक औरत तिगनी का नाच नचा रही है। क्या बात है।“ व्यंगपूर्ण स्वर में अर्जुन ने कहा।
”अर्जुन। ताना मत दो। भगवान की कसम बस एक बार उसका चेहरा मेरे सामने आ जाये। ऐसा सबक सिखाऊँगा कि.....।“ बात अधूरी छोड़कर वह मुट्ठियां भींचने लगा।
”बस,बस। ज़्यादा तैश में आने की ज़रूरत नहीं। तुमसे कुछ नहीं होगा। काम तो मैंने किया है। उसका फोटो खींच लिया है।“
”कहां की हाँक रहे हो। वह तो हमेशा नकाब में रहती हैै। तुम्हारे कैमरे ने कब उसकी शक्ल देख ली?“
”इस वारदात के बाद जब वह भाग रही थी तो थोड़ी देर के लिये उसके चेहरे से नकाब हट गया था। उसी समय मेरे कैमरे ने अपना काम कर दिया। अब ये बताओ कि फोटो तुम देखोगे या मैं सीधे अपने अखबार के दफ्तर में पहुंचा दूँ।“ अर्जुन ने फोटो जेब से निकालकर अपने हाथ में ले ली थी।
”लाओ इधर दो।“ इं. राहुल ने फोटो लेने के लिये हाथ बढ़ाया।
फोटो देखते ही इं. राहुल चैंक कर इस तरह अर्जुन को देखने लगा जैसे उसकी दिमागी हालत पर शक कर रहा है।
”ऐसे क्या घूर घूर कर देख रहे हो। क्या मेरे सींग निकल आये है ?“ अर्जुन ने मज़ाकिया भाव में कहा।
”ये फोटो उस क़ातिल लड़की की है ?“
”हाँ हाँ । क्या तुम्हें कोई शक है ?“
”क्यों मज़ाक कर रहे हो मुझसे। इस लड़की को मैं बचपन से जानता हूं। ये कातिल हो ही नहीं सकती।“
”क्यों ? ऐसी क्या बात है इसमें ? कौन है ये ?“
”ये इस शहर के डी.एम. मि. राकेश कुमार की लड़की आरती है। राकेश कुमार मेरा दोस्त है। उसकी लड़की आरती अपनी सौतेली मां के ज़ुल्मों के कारण हर वक्त डरी सहमी रहती है। वह तो एक चींटी भी नहीं मार सकती। इंसान का कत्ल तो बहुत बड़ी बात है।“
”कहीं ऐसा तो नहीं कि वह दब्बूपन की सिर्फ ऐक्टिंग करती हो और फिर नकाब पहनकर अपने करिश्मे दिखाती हो।“
”इम्पासिबिल। मैंने कहा न कि वह बचपन से ही ऐसी हैै।“
”फिर तो हिन्दी फिल्मों की तरह ये खतरनाक बला तुम्हारी वाली आरती की कोई जुड़वंा बहन है। जो बचपन में किसी मेले में बिछड़ गयी थी और अब बड़ी होकर अपने रंग दिखा रही है।“
”क्या बकवास है। खैर मैं तुम्हारा शक दूर करने के लिये आरती से मिल लेता हूं।“ इं. राहुल एक बार फिर उस फोटो को घूरने लगा।
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जब इं. राहुल ने डी.एम. राकेश कुमार के घर में आरती से पूछताछ की तो वह कुछ और घबरा गई।
”फोटो में शक्ल तो मेरी ही है। लेकिन ये मैं नहीं हूँ।“ आरती ने सहमते हुये जवाब दिया।
”तू झूट बोल रही हैै। ऊपर से तो बहुत सीधी सादी बनती है, लेकिन अंदर ही अंदर पूरी आफत बनी जा रही है।“ रीमा ने इं. राहुल के सामने ही चीखना शुरू कर दिया था।
”एक मिनट।“ इं. राहुल ने रीमा को आगे बोलने से रोका और खुद कुछ और सवाल पूछने शुरू कर दिये। आरती के जवाबों के साथ ही उसकी उलझन बढ़ती गई।
”आरती हरगिज़ मुजरिम नहीं हो सकती। तुमने ज़रूर गलत फोटो खींच ली है।“ उसने अर्जुन से कहा।
”मेरी राय मानो और आरती की निगरानी करवाओ। अगर वह नकाब पहनकर निकलेगी तो हमें मालूम हो जायेगा।“ ”ठीक है। यह भी करके देख लेते हैं।“
फिर दोनों ने खुद ही उसकी निगरानी करने का निश्चय किया। दोनों डी.एम. के बंगले के सामने पहुँचकर झाड़ियों में छिप गये। धीरे धीरे रात गहरी होती गई।
”मैं फिर कहता हूँ कि तुम्हारा शक बेबुनियाद है। बंगले में तो सन्नाटा छा चुका है।“
”अभी तो कुछ ही घण्टे बीते हैं यहाँ। आगे कुछ नहीं कहा जा सकता।“ अर्जुन ने कहा।
फिर एकाएक इं. राहुल सीधा हो गया। क्योंकि बंगले की एक खिड़की खुली थी और वहां से एक रस्सी नीचे लटकने लगी थी। चन्द क्षणों बाद रस्सी की मदद से एक लड़की नीचे उतरने लगी। जिसका मुंह नकाब में छुपा हुआ था।
”अब तो तुम्हें यकीन हुआ न।“ अर्जुन बड़बड़ाया। इं. राहुल ने उसे चुप रहने का इशारा किया और दोंनो नकाबपोश लड़की का पीछा करने लगे जो अब कुछ दूर स्थित पेड़ांे के झुरमुट की तरफ बढ़ रही थी। झुरमुट पार करके वह घनी झाड़ियों के अन्दर जाकर गायब हो गयी।
फिर दोनों ने मोटर साईकिल स्टार्ट होने की आवाज़ सुनी और फिर अपनी जीप की तरफ भागे। थोड़ी देर बाद उनकी जीप लड़की की तेज़ रफ्तार मोटरसाइकिल का पीछा कर रही थी।
लगभग एक घण्टे के सफर के पश्चात लड़की की मोटरसाइकिल शहर की मशहूर साइंटिफिक लैब के सामने जाकर रूक गयी। इस लैब में मानवीय मस्तिष्क से सम्बन्धित शोध कार्य होते थे।
”इससे पहले कि ये इस लैब में कुछ बवाल करे, हम इसे गिरफ्तार कर लेते हैं।“ कहते हुये इं. राहुल लड़की की तरफ बढ़ा, लेकिन उससे पहले ही वह भीतर जा चुकी थी। जब दोनों लैबोरेट्री का दरवाज़ा खोलकर अंदर घुसे तो लड़की का कहीं पता नहीं था। हां लैब का मुख्य साइंटिस्ट डा0 अभिनव सामने ही दिखायी पड़ गया।
”डाक्टर साहब। अभी यहां एक लड़की घुसी है, जिसके चेहरे पर नकाब है।“ इं. राहुल ने जल्दी से कहा।
”मेरे साथ आओ।“ इं. राहुल की बात सुनकर भी डा0 अभिनव सामान्य रहा। दोनों को लेकर वह एक कमरे में पहुंचा। कमरे की एक दीवार पारदर्शी थी। अभिनव ने पारदर्शी दीवार की तरफ इशारा करते हुये कहा, ”शायद तुम इस लड़की बात कर रहे हो।“
दोनों ने घूमकर देखा और चौंक पड़े। पारदर्शी दीवार के दूसरी तरफ आरती का नकाबरहित चेहरा दिखाई दे रहा था।
”य- ये कैसी पहेली है ? डा. अभिनव क्या आप जानते हैं कि यह लड़की दर्जनों मर्डर कर चुकी है और दुनिया को दिखाने के लिये भोली बनी हुई है। आप इसे फौरन हमारे हवाले कर दीजिये,वरना यह आपको भी नुकसान पहुँचा सकती है।
”नहीं इन्सपेक्टर। यह मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचायगी। मुझे क्या, किसी को भी नहीं बशर्ते वह प्रशासनिक अफसर न हो।“
”मालूम होता है आप इसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं।“ अर्जुन ने साइंटिस्ट को घूरा।
”बहुत कुछ नहीं बल्कि सब कुछ। क्योंकि आरती के ब्लैक मर्डर वाले रूप की रचना मैंने ही की है।“ साइंटिस्ट डा0 अभिनव के शब्द किसी बम की तरह फटे और दोनों कुर्सी से उछलने पर मजबूर हो गये।
”यानि उन हत्याओं में तुम भी बराबर के शामिल हो।“ इं. राहुल का हाथ होलेस्टर की तरफ रेंग गया।
‘‘हाँ! लेकिन तुम मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते। दुनिया का कोई कानून मेरे जुर्म को जुर्म नहीं कर कह सकता। ठीक उसी तरह, जिस तरह एटम बम का आविष्कारक मुजरिम नहीं कहलाता। हालांकि उस बम की वजह से लाखों जानें चली गईं।“
”तुम कहना क्या चाहते हो डाक्टर ?“ अर्जुन ने पूछा।
”मैं तुम्हें आज पूरी कहानी सुनाऊँगा। ताकि मेरे मस्तिष्क में उबलता हुआ लावा शान्त हो जाये। ये लड़की जो तुम चैम्बर के अन्दर देख रहे हो, एक साइकोलाजिस्ट और न्यूरोलाजिस्ट के दिमाग की उपज है। मैं तुम्हें शुरू से बताता हूँ। उसने अपनी पीठ कुर्सी से टिकाते हुये आँखें बन्द कर लीं ताकि अपनी कहानी का ताना बाना बुन सके। ”यह उस ज़माने की बात है जब मैंने बी.एस.सी. में दाखिला लिया था। मेरा बाप सरकारी नौकरी में क्लर्क के पद पर था। ईमानदार था इसलिये घर में हमेशा पैसे की तंगी रहती थी। बहुत मुश्किल से मेरी पढ़ाई का खर्चा निकलता था। उसी वक्त एक खौफनाक हादसे ने मेरे घर में तूफान बरपा कर दिया। मेरे बाप के डिपार्टमेन्ट का एक भ्रष्ट अफसर रिश्वतखोरी के एक बड़े केस में फंस गया। अपनी गर्दन बचाने के लिये उसने सारा इल्ज़ाम मेरे बाप पर थोप दिया, और अपने कुुछ और साथी अफसरों की मदद से मेरे बाप को मुजरिम साबित भी कर दिया। मेरे बाप को जेल हो गई और मेरा पूरा घर बर्बाद हो गया। बाद में मस्तिष्क विज्ञान के एक साइंटिस्ट ने मेरी मदद की और मुझे अपना असिस्टेंट बना लिया। तब मैं सब कुछ भूल भाल कर उसके साथ रिसर्च में जुट गया। जानते हो क्या थी उसकी रिसर्च?“ उसके सवाल पर दोनों चौंक पड़े और फिर नहीं में सर हिला दिया।
”हर इंसान की पर्सनालिटी के दो पहलू होते हैं। एक वो जो सामने दिखता है, और दूसरा वो जो मस्तिष्क के किसी अंधेरे भाग में दुबका हुआ होता है। उदाहरण के लिये एक बहुत दुबला पतला कमज़ोर इंसान है, जो एक मक्खी मारते हुये भी घबराता है। उसी के मस्तिष्क का एक भाग ऐसा होगा जो उसे लगातार हीमैन  बनने को उकसाता रहेगा। उसे ज़ालिम बनने और पूरी दुनिया को तबाह कर देने को कहता रहेगा। इसी तरह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति के मन का एक हिस्सा ऐसा होगा जो बहुत ज़्यादा डरपोक होगा। एक चूहे से भी डर जाने वाला।
मानवीय मस्तिष्क के ये छुपे पहलू बहुत कमज़ोर होते हैं। और उनका असर उसकी आम ज़िंदगी पर न के बराबर होता है। लेकिन कभी कभी मस्तिष्क का यही कमज़ोर भाग जब उभर कर आगे आता है तो मनुष्य को सुपर पावर में बदल देता है। इसके बहुत से उदाहरण इतिहास के पन्नों में मिल जायेंगे। कभी हमेशा बीमार रहने वाला शख्स आगे चलकर बहुत बड़ा योद्धा बना तो कभी कोई मंद बुद्धि बालक बड़ा होकर महान वैज्ञानिक बना।
हमने अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए आखिरकार दिमाग का वह भाग खोज निकाला जहां मनुष्य की दूसरी पर्सनालिटी का अस्तित्व था। उसी समय में मेरे गाइड की मृत्यु हो गयी और मैं अकेले इस रिसर्च को आगे बढ़ाने लगा। फिर मेरे मन में एक अछूता ख्याल आया, कि क्यों न किसी दबे कुचले शख्स के दिमाग के हीमैन वाले भाग को शक्तिशाली बना दिया जाये। मैंने इसके लिये आरती को चुना जो अपनी सौतेली माँ के जु़ल्मों के आगे हमेशा सहमी रहती थी। लेकिन उसके दिमाग के खास कोने में सौतेली माँ व बाप के ज़ुल्म और लापरवाही के खिलाफ विद्रोह का अंकुर फूट रहा था। मैंने उसके दिमाग के इस विद्रोही भाग को विद्युत तरंगों की एक खास आवृति द्वारा अनुनादित किया। अनुनाद का मतलब जानते हैं आप लोग ?“ अपनी बात बीच में रोककर डा0 अभिनव ने प्रश्न किया।
दोनों ने नहीं में सर हिला दिया।
”इस दुनिया में प्रत्येक वस्तु की एक निश्चित प्राकृतिक आवृति होती है। जिससे वह कंपन करके आवाज़ पैदा करती है। अगर मैं अपने सामने की मेज़ पर हाथ से चोट करूँ तो पैदा होने वाली आवाज़ मेज़ की प्राकृतिक आवृत्ति होगी। अब इसी आवृत्ति की आवाज़ अगर मैं किसी और साधन से पैदा करूँ तो मेज़ बहुत तीव्र गति से कंपन करने लगेगी। ऐसे कंपन जो इस मेज़ के टुकड़े भी कर सकते हैं। यही अनुनाद होता है।
मैंने भी इसी नियम का सहारा लेते हुये आरती के विद्रोही दिमाग को अनुनाद द्वारा अत्यन्त शक्तिशाली बना दिया। और उसका आश्चर्यजनक परिणाम सामने आया। अनुनाद की दशा में आरती अपनी आम पर्सनालिटी को भूलकर एक नये तेवर में नज़र आयी। नारी शक्ति की उच्च सीमा बनकर। जिस तरह से उसने लोगों को मौत के घाट उतारा, आम औरत कभी ऐसा सोच भी नहीं सकती।“
”लेकिन वह तो अपने सारे जुर्मों से इंकार कर रही है। क्या वह हमसे झूठ बोल रही है ? लेकिन उसके चेहरे पर तो ऐसा भोलापन छाया है जैसे उसने कभी झूठ बोला ही नहीं।“ इं. राहुल ने अपना सर सहलाते हुये कहा।
”वह वाकई झूठ नहीं बोलती है। दरअसल अनुनाद की दशा में जो उसकी पर्सनालिटी होती है, नार्मल दशा में आने के बाद वह उसे पूरी तरह भूल जाती है।“
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”कैसा अनोखा केस है। मुजरिम सामने होते हुये भी हम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। क्योंकि मुजरिम खुद भी नहीं जानता कि उसका जुर्म क्या है।“ अर्जुन ने इं. राहुल की तरफ देखा। दोनों इस वक्त लैब से बाहर आ चुके थे।
”हाँ। केस तो उलझन भरा है। इस बारे में मुझे कुछ पुराने रिकार्ड देखने पड़ेंगे। हो सकता है इससे मिलता जुलता कोई और केस पहले कभी सामने आया हो।“
”अगर तुम मेरी मानो तो डा0 अभिनव को गिरफ्तार कर लो। क्योंकि असली मुजरिम वही है।“ अर्जुन ने कहा।
”वह कैसे ?“
”अगर हत्याओं का सिलसिला आरती के विद्रोही दिमाग की उपज माना जाये तो उसे सबसे पहले अपने बाप और सौतेली माँ को कत्ल करना चाहिये था। लेकिन उसने प्रशासनिक अफसरों को कत्ल किया। जिन्होंने डा0 अभिनव को चोट पहुँचायी थी। इससे साफ है कि डा0 अभिनव ने आरती के विद्रोही दिमाग का इस्तेमाल अपने लिये किया। प्रशासनिक अफसरों से इंतेकाम के लिये उसने निहायत खूबसूरती के साथ एक प्रशासनिक अफसर की लड़की का इस्तेमाल किया।“
”तुम ठीक कहते हो। अभिनव ही असली मुजरिम है।“ दोनों वापस पलटे और फिर ठिठक गये। क्योंकि आरती लैब के दरवाज़े पर खड़ी थी। उसके हाथों में रिवाल्वर नज़र आ रहा था।
”तुम।?“ दोनों के मुँह से एक साथ निकला।
”अब तुम दोनों को भीतर जाने की ज़रूरत नहीं। मैंने डा0 अभिनव का कत्ल कर दिया है। आओ मुझे गिरफ्तार कर लो।“
”क्या ?“ दोनों चौंक कर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।
”इस वक्त मैं अपने पूरे होशो हवास में हूँ। यानि वही दब्बू आरती जो हर वक्त रोती सिसकती रहती है। मैंने तुम लोगांे की बातचीत सुन ली थी। किस तरंह डा0 अभिनव ने मुझे अपने लिये इस्तेमाल किया ये भी मैंने मालूम कर लिया। उसने मेरे दिमाग का विद्रोही रूप उभारने से पहले मुझे हिप्नोटाइज़ किया था और मेरे अचेतन मस्तिष्क में यह भावना बैठा दी थी कि मुझे प्रशासनिक अफसरों का कत्ल करना है। उसने मुझ जैसी सीधी सादी लड़की को कातिल बना दिया। जब यह राज़ मुझ पर खुला तो मैंने उसे कत्ल कर दिया। आओ मुझे गिरफ्तार कर लो। मेरी गिरफ्तारी मेरे माँ बाप के मुँह पर भी एक तमांचा होगी जो मेरी बरबादी के असली ज़िम्मेदार हैं।“ आरती इस वक्त पूरी तरह बदली नज़र आ रही थी। इं. राहुल खामोशी से आगे बढ़ा और उसके हाथों में हथकड़ियां पहनाने लगा।

--समाप्त--
ज़ीशान हैदर ज़ैदी - लेखक