Saturday, September 13, 2014

जिस्म खोने के बाद : कहानी (तीसरा अंतिम भाग)

इस निर्जन स्थान पर उतरने के लिये बेकर ने एक हेलीकाप्टर की मदद ली थी। घने पेड़ों के नीचे एक छोटे से मैदान पर हेलीकाप्टर ने उसे उतारा और फिर तुरन्त वापस हो गया। बेकर ने दिग्दर्शक यन्त्र की मदद से दिशा निर्धारित की और फिर चल पड़ा। रोनाल्डो की जानकारी के अनुसार उसकी मंज़िल पास ही कहीं होनी चाहिये थी।

‘‘घने पेड़ों के झुरमुट के बीच लगभग एक सौ मीटर चलने के पश्चात एकाएक उसने अपने  आपको एक गोलाकार इमारत के सामने पाया। इमारत पूरी तरह आधुनिक तरीके से बनी हुई थी। कुछ देर दूर से उसका निरीक्षण करने के बाद वह इमारत के दरवाज़े के पास पहुँच गया। 

उसी समय दरवाज़ा खुला और अन्दर से एक व्यक्ति बाहर निकला। दोनों एक दूसरे को हैरत से देखने लगे।

‘‘बेकर! तुम यहाँ ?’’ अन्दर से निकलने वाले की आवाज़ में हैरत थी।
‘‘डा0 कार्टर। तुम्हें यहाँ देखकर मैं हैरत में हूँ। तुम तो एकाएक अपने आवास से गायब हो गये थे।’’
‘‘दरअसल मैं यू.एस.ए. द्वारा किये जाने वाले एक गुप्त प्रोजेक्ट पर यहाँ भेज दिया गया था। प्रोजेक्ट इतना गुप्त था कि किसी को भी खबर नहीं की गई।’’

बातचीत करते हुये दोनों इमारत के अन्दर प्रवेश कर गये।
उस कमरे में बेकर के साथ साथ चारों साइंटिस्ट बैठे हुये थे।

‘‘मि0 बेकर, अब आप यहाँ आने का मकसद बताईये।’’ प्रो0 चाल्र्स ने कहा।
‘‘मैं ज़रूर बताऊँगा। लेकिन इससे पहले मैं आपके प्रोजेक्ट के बारे में थोड़ी सी जानकारी चाहता हूँ।’’

चारों वैज्ञानिकों ने एक दूसरे की ओर देखा फिर कार्टर ने कहना शुरू किया। 

‘‘आज से लगभग आठ महीने पहले हमें एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसका शरीर रेडियोएक्टिव विकिरण में रहने के कारण बेकार हो चुका था। बस केवल उसका मस्तिष्क सही सलामत था। उसी समय अमेरिका की एक लैबोरेट्री में रिसर्च चल रही थी कि अगर किसी मानवीय मस्तिष्क के पास शरीर जैसा साधन न हो तो क्या वह अकेले अपने बल पर कुछ करने की दक्षता रखता है या नहीं।’’

‘‘यह कैसे संभव है। मस्तिष्क जो कुछ भी करता है शरीर के अंगों की सहायता से करता है। अगर हाथ, पैर, आँख, कान न हों तो मस्तिष्क कुछ नहीं कर सकता।’’ बेकर ने कहा।

‘‘दुनिया की सर्वाधिक जटिल व बु़िद्धमान रचना के बारे में यह सोचना कि वह पूरी तरह लाचार होता है, उचित नहीं।’’ प्रो0 चाल्र्स ने कहा, ‘‘इसीलिये हमने इस दिशा में कार्य शुरू किया। और इसमें रेडियोएक्टिविटी से पीड़ित वह भारतीय आदर्श कुमार, हमारे बहुत काम आया। उसका जिस्म बेकार हो चुका था और वह आत्महत्या के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा था। इसीलिये उसने खुशी से अपना मस्तिष्क निकालने की सहमति दे दी। हम आपरेशन द्वारा उसका मस्तिष्क निकालकर एक्सपेरीमेण्ट्स करने लगे। जो कि अभी तक जारी है।’’

‘‘मस्तिष्क को आपने जीवित किस तरह रखा ?’’
‘‘जीवन के लिये उसे एनर्जी की ज़रूरत होती है। जिसे हम विद्युत रूप में पहुँचाते रहते हैं।’’ कार्टर बोला।

‘‘क्या मस्तिष्क ने कोई हरकत की अब तक?’’
‘‘नहीं। पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा है वह। अब हम यह सोचने पर मजबूर है कि शरीर के बाहर, बिना साधनों के मस्तिष्क कुछ नहीं कर सकता। ’’ प्रो0 चाल्र्स के स्वर में हल्की सी मायूसी थी।

‘‘शायद कर कर सकता है।’’

‘‘क्या मतलब ?’’ कार्टर ने चौंक कर पूछा।

‘‘सबसे पहले मैं आप लोगों को यहाँ आने का उद्देश्य बता दूँ।’’ कहते हुये बेकर ने अपना बैग खोला और उसमें से अखबारों की कुछ कटिंग्स निकालकर सामने रख दीं। इन कटिंग्स में पाँचों हत्याओं का ब्योरा था। चारों साइंटिस्ट उन कटिंग्स को देखने लगे।

बेकर ने उन हत्याओं के बारे में बताने के बाद साइंटिस्ट रोनाल्डो का अनुमान बताया और फिर बोला, ‘‘अपनी अब तक की छानबीन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि जिन विद्युत तरंगों द्वारा आप आदर्श कुमार के मस्तिष्क को एनर्जी दे रहे हैं, मस्तिष्क ने उन्हीं तरंगों को अपना साधन बना लिया है और उन्हें कण्ट्रोल करके ये हत्याएं की हैं उसने।’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो बहुत ही आश्चर्यजनक है यह हमारे लिये।’’
‘‘लेकिन सवाल उठता है कि उसने ये हत्याएं क्यों की ?’’ कार्टर ने कहा।
‘‘शायद आदर्श कुमार के जीवन से मरने वालों का गहरा संबंध रहा है, क्या उसकी पूरी जीवनी मिल सकती है कहीं से ?’’ बेकर ने पूछा।

‘‘ज़रूर। जिस संस्था के द्वारा आदर्श कुमार हमारे सम्पर्क में आया। वह संस्था ज़रूर इसके बारे में जानकारी रखती होगी। मैं वहाँ से सम्पर्क करता हूँ।’’ कार्टर ने कहा।
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बेकर को आदर्श कुमार की पूरी जीवनी मिल गयी। और इसी के साथ हत्याओं का राज़ परत दर परत खुलता गया।

आदर्श कुमार एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सर्विस करते हुये अमेरिका पहुँचा था और यहाँ पर उसकी मुलाकात मिस रीटा से हुई। जो उस समय गुमनाम थी। वह उसके प्रेम में गिरफ्तार हो गया और फिल्मी जगत की बड़ी बड़ी हस्तियों से मिलाने में उसकी काफी मदद की। लेकिन मिस रीटा ने उससे बेवफाई की और उसे छोड़कर एक फिल्मी प्रोडयूसर से प्रेम की पींगें बढ़ाने लगी। आदर्श कुमार ने उससे झगड़ा किया और रीटा ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी। आदर्श कुमार ने एक वकील लोरेटो की मदद ली लेकिन रीटा ने वकील को भी अपने मोहपाश में बाँधकर केस कमज़ोर करा दिया। कोर्ट ने आदर्श कुमार के खिलाफ फैसला किया। भारी जुर्माने ने आदर्श कुमार को दर दर का भिखारी बना दिया। हताश होकर वह एक समाज सेविका रोजलीना के पास मदद के लिये पहुँचा। लेकिन उसने भी धोखा दिया। और पैसा लेकर उसे दो साइंटिस्टों के सुपुर्द कर दिया जो रेडियोएक्टिविटी का मानव शरीर पर असर देखने सम्बन्धी प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने उसके शरीर पर एक्सपेरीमेन्टंस किये और उसका शरीर रेडियोएक्टिविटी से प्रभावित होकर बेकार हो गया।"

‘‘तो इस तरह आदर्श कुमार की बरबादी के पीछे पाँच लोगों का हाथ रहा।’’ बेकर ने पूरी कहानी सुनाने के पश्चात कहा, ‘‘ज़िन्दगी में वह इन लोगों से बदला नहीं ले पाया लेकिन जब उसके मस्तिष्क को मौका मिला तो उसने काम तमाम कर दिया।’’

कुछ देर वहाँ खामोशी छायी रही, उसके बाद प्रो0 चाल्र्स ने कहा, ‘‘यनि कि इस केस में हत्यारे को कोई सज़ा नहीं दी जा सकती क्योंकि उसका जिस्म पहले ही मिट चुका है।’’

‘‘आप ठीक कहते हैं। इसलिये अब मैं यू.एस.ए. वापस जाकर केस की फाइल बन्द कर रहा हूँ।’’ बेकर ने कहा।

‘‘यही होना भी चाहिये। वरना हमारा गुप्त रूप से चलने वाला एक्सपेरीमेन्ट्स दुनिया की नज़रों में आ जायेगा। और यह हम सब के लिये उचित नहीं होगा।’’ कार्टर बोला।

इस घटना के दो महीने बाद बेकर की मुठभेड़ एकाएक कार्टर से हो गई।

‘‘कार्टर तुम यहाँ ?’’ हालीवुड में कार्टर को देखकर बेकर को हैरत हुई। 
‘‘हाँं। अब मैं यहीं हूँं। क्योंकि वह प्रोजेक्ट समाप्त हो चुका है।’’ कार्टर ने जवाब दिया।
‘‘ओह। लेकिन आदर्श कुमार के दिमाग का क्या हुआ ?’’

‘‘वह यहीं हैै। प्रो0 चाल्र्स उसके बारे में पूरी जानकारी रखते हैं।’’

बेकर ने प्रो0 चाल्र्स से मिलने की इच्छा प्रकट की। कार्टर उसे प्रोफेसर से मिलवाने के लिये तैयार हो गया।
उसके बाद वे लोग जिस स्थान पर पहुँचे वह शहर का ट्रैफिक कन्ट्रोल रूम था। अर्थात यहाँ से शहर का समस्त ट्रैफिक यन्त्रों की मदद से संचालित किया जाता था।

‘‘यह तुम मुझे कहाँ ले आये ?’’ बेकर ने कहा।
‘‘अभी मालूम हो जायेगा।’’ कहते हुये कार्टर आगे बढ़ा। पीछे पीछे बेकर था। 

एक कमरे के सामने पहुँच कर कार्टर ने दरवाज़े को धक्का दिया और दोंनों अन्दर पहुँच गये।
वहाँ प्रो0 चाल्र्स मौजूद थे।

‘‘तुम आदर्श कुमार के दिमाग के बारे में जानकारी चाहते हो।’’ प्रो0 चाल्र्स ने बेकर को देखते ही कहा।
‘‘हाँ।’’
‘‘वह दिमाग इस समय इसी इमारत में मौजूद हैं। और शहर के समस्त ट्रैफिक को कन्ट्रोल कर रहा है।’’

‘‘क्या मतलब ?’’

‘‘तुम्हारी तफ्तीश से जब मुझे आदर्श कुमार के मस्तिष्क की विशेषता मालूम हुई तो मैंने उसके उपयोग के बारे में विचार किया। और उसके बाद हमने उसका सम्पर्क यहाँ की ट्रैफिक कन्ट्रोल मशीनों के साथ कर दिया। एक मानवीय मस्तिष्क पा कर ये मशीनें बेहतर ढंग से कार्य कर रही हैं।

‘‘लेकिन ये खतरनाक भी हो सकता है। अगर कभी पुरानी स्मृति के आधार पर वह फिर कोई खुराफात कर बैठा तो ?’’

‘‘ऐसा नहीं होगा।’’ प्रो0 चाल्र्स ने कहा।
‘‘क्यों ?क्यों नहीं होगा ?

‘‘क्योंकि मैनें आपरेशन करके मस्तिष्क से स्मृति वाला भाग निकाल दिया है।’’ प्रो0 चाल्र्स ने अपनी बात पूरी की।

अब वहाँ गहरी खामोशी थी। 
--समाप्त--
-ज़ीशान हैदर ज़ैदी
लेखक 
First time published in August 2004 in proceedings of Chunar SF Conference

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