Saturday, February 22, 2014

हास्य ड्रामा अकबर की जोधा का मंचन

ज़ीशान हैदर ज़ैदी द्वारा लिखित हास्य ड्रामा अकबर की जोधा का मंचन इमरान खान के निर्देशन में दिनांक 21 फरवरी 2014 को संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ की वाल्मीकि रंगशाला में हुआ। नाटक में विकास, नमन, जयप्रकाश, भूषण, सुमन, सरिता, सृजन, आरिफ, शफीक इत्यादि कलाकारों ने अपने अभिनय के जौहर दिखलाये। नाटक के मुख्य अतिथि संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष व राज्य मन्त्री नवेद सिददीकी थे। 

नाटक 'अकबर की जोधा में कन्या भूण हत्या सहित समाज की अनेक समस्याओं को हास्य की चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत किया गया है। एक डायरेक्टर का जोधा अकबर ड्रामा खटाई में पड़ गया है क्योंकि उसे अपने ड्रामे में जोधा के रोल के लिये कोई लड़की नहीं मिल रही है। 

देश में लड़कियों की कमी हो गयी है। और इसका कारण साफ है। आज देश में बुरी नज़र रखने वाले रावण तो गली गली पैदा हो गये हैं लेकिन ऐसे भाई पैदा होने बन्द हो गये हैं जो जान देकर अपनी बहनों की हिफाज़त करते थे। और अब तो ऐसे बाप भी नज़र आना बन्द हो गये हैं जिनकी गोद में बेटियां सुकून की नींद सोया करती थीं। नतीजा ये कि देश में बेटियां तेज़ी से कम हो रही हैं। और जो हैं उनकी इज्ज़त आबरू की हिफाज़त करने वाले नहीं रहे। अब पेट में ही बेटियों को मौत की नींद सुला दिया जाता है और एक लड़के की चाहत में लोग कभी चार शादियां कर डालते हैं तो कभी इलाज पर ही लाखों खर्च कर डालते हैं।

जवान जोधा की तलाश में उन्हें मिलती हैं बूढ़ी उम्रदराज़ औरतें जिनके सर पर अभी भी कैटरीना कैफ या प्रियंका चोपड़ा बनने का भूत सवार है। थक हार कर डायरेक्टर व कलाकार मिलकर शुरू कर देते हैं कन्या बचाव अभियान। लोगों को समझाते हैं कि लड़की पैदा करने में बहुत फायदे हैं। जब आप लड़का पैदा करते हैं तो वह कभी चंगेज़ खाँ और हिटलर बनकर क़त्लेआम करता है, कभी एटम बम और मिसार्इलें बनाकर शहरों को वीरान करता है, कभी अलक़ायदा जैसे लश्कर बनाकर लाशें बिछाता है और कभी दंगों में लोगों को जि़न्दा जलाता है। लेकिन जब आप लड़की पैदा करते हैं तो वह माँ बनकर आपको लोरियाँ सुनाती है, बहन बनकर बाप की डाँट से बचाती है, बेटी बनकर थके हुए पलों को सुकून देती है और बीवी बनकर आपके तमाम दु:खों को अपनी बाहों में समेट लेती है।

अपने अभियान में उन्हें ओछी मानसिकता के लोगों से जूते भी खाने पड़ते हैं और कहीं गूंगे बहरे लोगों से सामना भी होता है जो अपने में ही मस्त हैं। उन्हें समाज की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं। कुछ पैसे वाले लोग भी समाज में हैं जो अपने पैसे के ज़ोर पर अपने नालायक लड़के को हीरो बनाना चाहते हैं। उधर ढलती उम्र की औरतें नाटक में हीरोर्इन का रोल करने के लिये बेताब हैं क्योंकि इससे उन्हें फिल्म इण्डस्ट्री में कैटरीना कैफ की जगह मिलने वाली है। ऐसा उनका सोचना है। नतीजा ये कि अच्छा भला नाटक चूं चूं का मुरब्बा बन जाता है। उसका टाइटिल भी 'जोधा-अकबर से बदलकर 'औंधा-अकबर' हो जाता है। 


1 comment:

Mock_Test said...

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