Thursday, October 7, 2010

कहानी : बचाने वाला! (भाग - 1)

‘‘हमें यह काम हर हाल में करना होगा। इसके अलावा इस प्राबलम का और कोई सोल्यूशन नहीं है।’’ ब्रिटिश वैज्ञानिक मि0 हिल्ड्रिच ने अपना चश्मा रूमाल से साफ करते हुये कहा। उन्होंने यह बात जापानी वैज्ञानिक मि0 ओसाका के समर्थन में कही थी। जबकि दूसरे साईटिस्ट इससे सहमत नहीं थे।
ये लगभग बीस विकसित देशों के वैज्ञानिकों का सेमिनार था और ये लोग इस वक्त एक गंभीर समस्या पर विचार करने के लिये एकत्रित हुये थे। पूरी मानव जाति इस समस्या से भयभीत थी और इसका कारण भी ठोस था। क्योंकि इस समय पूरी पृथ्वी का जीवन खतरे में था। पृथ्वी की आयु केवल पांच वर्ष रह गई थी। ठीक पाँच वर्ष बाद कोमेटिव नामक एक विशाल पुच्छल तारा पृथ्वी से टकराने वाला था और यह निश्चित था कि इस टक्कर के बाद पृथ्वी का समस्त जीवन नष्ट हो जाता।

प्रत्येक देश इस टक्कर को टालने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था, और इसी सम्बन्ध में विश्व के चोटी के वैज्ञानिको का यह सेमिनार पेरिस में आयोजित हुआ था।

इस सेमिनार में पहले दिन सर्वप्रथम जापानी वैज्ञानिक मि0 ओसाका ने अपने विचार रखे। उन्होंने पृथ्वी पर उपस्थित एटम बम्बस को इस्तेमाल करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि एटम बम्बस को अंतरिक्ष यानों की मदद से कोमेटिव के तल में फिट करके विस्फोट द्वारा छोटे छोटे टुकड़ों में बाँटा जा सकता है। इस प्रकार जब ये छोटे टुकड़े पृथ्वी से टकराएंगे तो कोई विशेष हानि नहीं होगी।

इस प्रस्ताव का समर्थन दो तीन वैज्ञानिकों ने किया किन्तु अमेरिकन वैज्ञानिक प्रोफेसर हिल ने इसको विरोध करते हुये कहा,‘‘यह संभव नहीं है। क्योंकि इस तरह के विस्फोट से घातक रेडियोएक्टिव किरणें पृथ्वी के आसपास फैल जायेंगी और इसका जो असर पृथ्वी के पर्यावरण पर पड़ेगा वह किसी भी प्रकार कोमेटिव की टक्कर से कम नहीं होगा।

‘‘हम हाईड्रोजन बम का प्रयोग करें तो कैसा रहेगा ? उसमें रेडियोएक्टिविटी का कोई खतरा नहीं होगा।’’ एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने मि0 ओसाका के पक्ष में अपनी बात रखी।

‘‘यह भी संभव नहीं है।’’ रूसी वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘वास्तव में कोमेटिव पृथ्वी के इतना करीब है कि हम ये उपाय नहीं अपना सकते। अगर हाईड्रोजन बम इस्तेमाल होगा तो उसके विस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा पृथ्वी के वायुमंडल से ओजोन परत नष्ट कर देगी। फिर सूर्य से आने वाली परबैगंनी किरणें तथा कास्मिक किरणें बगैर किसी रूकावट के पृथ्वी के जीवों को नष्ट कर देंगी।’’

फिर काफी देर तक इस समस्या पर विचार विमर्श होता रहा किन्तु कोई ठोस हल नहीं निकल सका। फिर यह मीटिंग अगले दिन के लिये स्थगित कर दी गयी। इस तरह पृथ्वी के जीवन में एक दिन और कम हो गया।
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