‘‘यह समस्याएं घर जाकर निपटेंगी। इस समय तो हम इस समस्या से जूझ रहे हैं कि बाहर किस प्रकार निकला जाये।’’
‘‘भला इसमें क्या समस्या है। दरवाजा खुला है। निकल जाओ बाहर।’’
‘‘मैं झोंपड़ी से बाहर निकलने की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि इस जंगल से बाहर निकलने की बात कर रहा हूं।’’ शमशेर सिंह ने स्पष्ट किया।
‘‘इस समस्या से तो बाद में निपटेंगे। पहले रामसिंह का इलाज कर लूं।’’ प्रोफेसर ने पीसी गयी पत्तियाँ एक बीकर में एकत्र कीं फिर उसे आग पर चढ़ा दिया। थोड़ी देर पकाने के बाद उसे उतार कर एक गिलास में छान लिया।
‘‘ये लो अर्क तैयार हो गया।’’ प्रोफेसर ने छने हुए जूस को एक शीशी में उँड़ेलते हुए कहा, ‘‘अब इसे किसी प्रकार रामसिंह को पिलाना है।’’
‘‘ये काम तो हो गया समझो। र्मैं इसे रामसिंह के भोजन में मिला कर दे दूंगा।’’ शमशेर सिंह ने प्रोफेसर के हाथ से शीशी ले ली।
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‘‘शमशेर सिंह, अब मुझसे सब्र नहीं होता। मैं जल्द से जल्द मोली से शादी कर लेना चाहता हूं।’’ रामसिंह एक ठण्डी साँस लेकर बोला। अभी अभी वह मोली से मिलकर आया था।
‘‘चिन्ता मत करो। हम लोग तुम्हारे इलाज का इंतिजाम कर रहे हैं।’’
‘‘क्या मतलब?’’ रामसिंह चौंक कर बोला।
‘‘मेरा मतलब, जल्दी ही हम लोग सरदार से बात करके तुम्हारी शादी करवा देंगे।’’ शमशेर सिंह ने बात बनायी।
‘‘लेकिन उन बच्चों का क्या होगा जो हमारे गले मढ़ दिये जायेंगे?’’ रामसिंह ने चिन्ता जताई।
‘‘उनकी चिन्ता मत करो। उन्हें हम पाल लेंगे। तुम भोजन कर लो फिलहाल।’’ शमशेर सिंह भोजन लाने के लिए उठ खड़ा हुआ।
फिर जब वह भोजन लाकर वापस आया तो अपना काम दिखा चुका था। अर्थात उसने प्रोफेसर का दिया अर्क भोजन में मिला दिया था।
रामसिंह ने भोजन करना आरम्भ कर दिया। शमशेर सिंह गौर से उसका चेहरा देख रहा था कि कब उसका अर्क असर करता है।
‘‘इस प्रकार क्या देख रहे हो?’’ रामसिंह ने हाथ रोककर पूछा।
‘‘कुछ नहीं। तुम भोजन करो। मैं सोच रहा था कि शायद बाद में मैं तुम्हें इस रूप में न देख सकूं।’’
‘‘क्या मतलब? भला मेरा रूप कैसे बदल जायेगा?’’
‘‘मैंने सुना है कि शादी के बाद लोग बदल जाते हैं।’’ शमशेर सिंह बोला। उसी समय प्रोफेसर ने अन्दर प्रवेश किया। वह कहीं बाहर से आया था।
‘‘क्या कुछ असर हुआ?’’ उसने संकेत से शमशेर सिंह से पूछा। चूंकि वह रामसिंह के पीछे था अत: रामसिंह उसका संकेत नहीं देख पाया।
‘‘अभी नहीं ।’’ संकेत में ही शमशेर सिंह ने उत्तर दिया।
2 comments:
Ye shama jalaye rakhen.
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
.....इतनी भी कठिन नहीं है यह पहेली।
अगली कड़ी का इन्तजार....
regards
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