‘‘हां, तो वैज्ञानिक बनने के लिए जरूरी है कि हर वस्तु का बारीकी से अध्ययन किया जाये। इसके लिए मैग्नीफाइंग ग्लास का उपयोग किया जा सकता है। अब जैसे यह पत्ती लो।’’ प्रोफेसर ने भूमि पर गिरी एक पत्ती उठायी, ‘‘ यदि तुम बारीकी से अध्ययन करो तो मालूम हो जायेगा कि यह किस पेड़ की पत्ती है।’’
‘‘इसमें अध्ययन की क्या आवष्यक्ता है। यह बरगद के पेड़ की पत्ती है।’’
‘‘तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’ प्रोफेसर ने चौंक कर पूछा।
‘‘इसलिए क्योंकि सामने खड़ा पेड़ बरगद का है और यह पत्ती उस पेड़ में लगी पत्तियों के समान है।’’
‘‘ठीक है। किन्तु इस प्रकार का अवलोकन गँवार करते हैं। तुम्हें बारीकी से निरीक्षण करने के बाद ही यह बात बतानी चाहिए थी। खैर छोड़ो, अब वैज्ञानिक की दूसरी पहचान सुनो। वह कभी कभी समस्या का हल करने में इतना लीन हो जाता है कि उसे आसपास का कुछ होश नहीं रहता ------ओह!’’ प्रोफेसर के मुंह से एक आह निकली क्योंकि वह रामसिंह की ओर देख रहा था। अत: उस पेड़ से बच नहीं पाया जो उसके रास्ते में आ गया था।
‘‘इस समय कौन सी समस्या में लीन थे प्रोफेसर जो आगे नहीं देख पाये?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘कोई खास समस्या नहीं। बस तुम्हें वैज्ञानिक बनाना है।’’ प्रोफेसर ने नीचे गिरा अपना धूप का चश्मा उठाते हुए कहा जो पेड़ की टक्कर के कारण उसकी नाक से टपक गया था।
‘‘अब आगे सुनो।’’ शर्ट की आस्तीन से उसने चश्मा साफ करते हुए कहा, ‘‘किसी भी वैज्ञानिक के घर में एक प्रयोगशाला अवश्य रहती है। तुम भी यही करना। इसके लिए जरूरी नहीं कि तुम अलग से कमरा रखो। अपने किचन से भी काम चला सकते हो। वैज्ञानिक उपकरण भी घर के सामान से बना सकते हो।’’
‘‘वह किस प्रकार?’’
‘‘अगर तुम्हारे पास परखनली नहीं है तो शीशे का गिलास ले लो। बर्नर नहीं है तो अँगीठी से काम चल जायेगा। एसिड रखने के लिए अचार रखने का मर्तबान खाली कर दो। आग दहकाने की फुंकनी में चश्मे का लेंस लगाकर टेलीस्कोप बना सकते हो। कास्टिक सोडा न मिले तो खाने के सोडे से काम चला सकते हो। एसिटिक एसिड की जगंह पर सिरके से काम चल जायेगा। केमिकल टेस्ट के लिए चूहे पकड़ लेना और -------।’’
‘‘और चूहा न मिले तो अपने हलक में केमिकल उंड़ेल लूं?’’ रामसिंह ने पूछा।
‘‘यह असंभव है कि घर में चूहे न मिलें। बल्कि घर गायब हो सकता है किन्तु चूहे नहीं। वैसे यदि तुम केमिकल पीना ही चाहते हो तो वापस चलकर मेरे घर पर आ जाना। मैंने एक केमिकल का आविष्कार किया है और टेस्ट के लिए किसी व्यक्ति को ढूंढ रहा हूं। उस केमिकल को पीने के बाद कोई भी व्यक्ति फर्राटे से नान स्टॉप बोलने लगेगा।’’
‘‘क्या वह मेरे मोहल्ले की रामकली का मुकाबला कर लेगा?’’
3 comments:
हास्य ही हास्य विज्ञान कब आयेगा ?
अरविन्द जी से सहमत!!
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.
जय हिन्दी!
अत्यंत रोचक सिलसिला है।
{ Treasurer-S, T }
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