Monday, July 20, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 13

‘‘फिर वही उल्टी बात। भला वे बेवकूफ क्यों बनायेंगे?’’
‘‘बात यह है कि मैंने किताबों में पढ़ा है कि अक्सर लोग नौकरी देने के नाम पर लोगों को ठग लेते हैं।’’ प्रोफेसर बोला।
‘‘किताबों की बातें किताबों में ही रहने दो। भला वे मुझे कैसे ठग सकते हैं? क्या मैं कोई गधा हूं। उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया और मैंने सब कुछ सही सही बता दिया। फिर वे मुझे सेलेक्ट न करते तो जाते कहाँ।’’

‘‘ठीक है। हमें यकीन हो गया।’’ इस बार रामसिंह बोला, ‘‘ये बताओ कि वे सैलरी यानि वेतन क्या देंगे?’’
रामसिंह की बात सुनकर शमशेर सिंह कुछ पलों तक सोचता रहा फिर बोला, ‘‘वेतन की तो कोई बात ही नहीं हुई।’’

‘‘देखा। बन गये उल्लू। अब वे बिना वेतन के तुमसे काम करवायेंगे और फिर भगा देंगे।’’ रामसिंह ने कहा।
‘‘यह कैसे हो सकता है। वेतन तो वे जरूर देंगे। और फिर उन्होंने काम भी मेरे मतलब का देने के लिए कहा है। यानि एडवेंचर।’’ शमशेर सिंह छाती फुलाकर बोला।

‘‘एडवेंचर?’’ रामसिंह चौंक कर बोला, ‘‘फिर तो तुम अभी जाकर डाक्टर से अपने दिल का चेकअप करवा लो और हो सके तो किसी पहलवान के पास जाकर दिल की मालिश भी करवा लेना।’’
‘‘वह क्यों?’’ शमशेर सिंह ने चकरा कर पूछा।
‘‘वह इसलिए, क्योंकि एडवेंचर वाले कामों में हार्ट यानि दिल के फेल होने का बहुत डर रहता है। अगर तुम्हारे साथ भी भगवान न करे ऐसी दुर्घटना हो गयी तो हम एक ठीक ठाक दोस्त से वंचित हो जायेंगे।’’

‘‘द---देखो मुझे ड---डराने की कोशिश मत करो। मेरे अंदर एक शेर का दिल धड़क रहा है।’’ अपने माथे पर आये पसीने को पोंछता हुआ शमशेर सिंह बोला।

‘‘शेर! मैं भी वह शेर सुनना चाहता हूं, जिसे सुनकर दिल धड़कने लगता है।’’ प्रोफेसर, जो किसी विचार में गुम था चौंक कर बोला।
‘‘हम उस शेर की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि जंगल में घूमते शेर की बात कर रहे हैं।’’ रामसिंह ने स्पष्टीकरण दिया।

‘‘ओह! मेरे दिमाग में इस समय एक किताब का डायलाग गूँजने लगा था जिसमें कहा गया है कि वह शेर सुनकर मेरा दिल धड धड करने लगा।’’
‘‘अच्छा, अब तुम लोग फूटो यहां से। मुझे अपने भविष्य की प्लानिंग करनी है।’’ शमशेर सिंह ने दोनों को दरवाजे की ओर धक्का दिया।
‘‘क्या अब घर बसाने की सोचोगे? क्योंकि मैंने किताबों में यही पढ़ा है कि लोग नौकरी मिलने के बाद अपना घर बसा लेते हैं। वैसे आजतक मुझे नहीं मालूम हो सका कि घर बसाने का मतलब क्या होता है।’’ प्रोफेसर ने ध्क्को के कारण दो तीन कदम पीछे हटते हुए कहा।

‘‘मैं तो फिलहाल यह सोचने जा रहा हूं कि एडवेंचर पर जाने में कितना मजा आता है। अब तुम किताबों में घर बसाने का मतलब ढूंढो। मैं तब तक एडवेंचर वाली नयी फिल्म के सीन याद करता हूं, जो परसों मैंने किराये की सीडी लाकर देखी थी।’’

उसने दोनों को बाहर करके अंदर से कुंडी लगा दी और की होल से तब तक झाँकता रहा जब तक दोनों दूर नहीं निकल गये। उसके बाद मेज़ के पास आकर उसने दराज़ खोली। अंदर एक लालीपाप रखा हुआ था। उसे उठाकर वह चारपायी पर लेट गया और आँखें बन्द करके चूसने लगा।

2 comments:

Arvind Mishra said...

तो अभी वातावरण ही तैयार हो रहा है !

अभिषेक मिश्र said...

Acchi rahi nonk-jhonk.