"हाँ, यह तो बहुत बेकार है. किंतु पेट तो भरना ही पड़ेगा. यह टुकड़ा तो पूरा खा ही जाओ." फ़िर दोनों ने मुंह बना बना कर साबुन की टिकियाँ गटक लीं. गुप्ता हवन्नक होकर दोनों की शक्लें देख रहा था.
"अजीब अधिकारी हैं ये लोग. आज तक किसी ने मेरी फैक्ट्री का इस तरह निरीक्षण नहीं किया." वह सर खुजलाते हुए बडबडाया.
"आओ, हम लोग यहाँ से चलते हैं. यहाँ के भोजन से तो अच्छा है की हम पेड़ों के फल तोड़कर खा लें." मारभट ने कहा और दोनों वापस मुड़ लिए. "अरे सर, आप लोग कहाँ जा रहे हैं? ये तो बताते जाइए की आप अपनी रिपोर्ट कैसी बनायेंगे? मैं आपकी हर प्रकार की सेवा करने के लिए तैयार हूँ. अरे सुनिए तो." मैनेजर पुकारते हुए इनके पीछे भागा किंतु इन्होने उसकी एक न सुनी और फैक्ट्री से बाहर आ गए.
"मूड ख़राब कर दिया कमबख्तों ने." उन लोगों के जाने के बाद गुप्ता बडबडाया फ़िर पहरेदारों से बोला, "अब कोई भी आए उसे फैक्ट्री के अन्दर मत घुसने देना." कहकर वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ अन्दर चला गया.
कुछ देर बाद दो व्यक्ति वहां पहुंचे और अन्दर जाने लगे.
"आप अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदारों ने उन्हें रोका.
"क्यों? हमारे पास इस बात का आज्ञापत्र है कि हमें फैक्ट्री के अन्दर जाने दिया जायेगा. हम लोग इसका निरीक्षण करने आए हैं."
"हमारे मैनेजर कि सख्त आज्ञा है कि किसी को अन्दर न आने दिया जाए. अतः आप लोग बिल्कुल अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदार अपनी बात पर अडे रहे.
फ़िर उनमें बहस होने लगी. और यह बहस तब तक चली जब तक उन अफसरों का पारा सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक न पहुँच गया. उसी समय गुप्ता किसी काम से बाहर आया और उन लोगों को लड़ता देखकर उसने मामला समझना चाहा. फ़िर जब उसे यह मालूम हुआ कि ये लोग सरकारी अफसर हैं और फैक्ट्री का निरीक्षण करने आए हैं तो वह एक बार फ़िर चकरा कर रह गया.
उसने अपने को संभाला और बोला, "आइये सर! इन पहरेदारों से भूल हो गई है. आप लोग फैक्ट्री का निरीक्षण करिए."
"हम लोग फैक्ट्री का निरीक्षण कर चुके. और अब जो रिपोर्ट हम सरकार को देंगे उसे तुम लोग सदेव याद रखोगे." उन अफसरों ने क्रोधित होकर कहा और वापस मुड़ गए.
"अरे सर सुनिए तो..." मैनेजर उनके पीछे दौड़ा किंतु उन अफसरों ने सुनी अनसुनी कर दी. फ़िर गुप्ता सर पकड़कर वहीँ बैठ गया.
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इस समय चीन्तिलाल और चोटीराज एक भरे बाज़ार से गुज़र रहे थे. अचानक गोली चलने की आवाज़ हुई और एक शोर सुनाई दिया. तीन चार लुटेरे एक बैंक लूटकर भाग रहे थे जिनके चेहरे नकाबों में छुपे हुए थे. उनमें से एक के हाथ में रिवाल्वर था.
"ये लोग कहाँ जा रहे हैं?" चोटीराज ने पूछा.
"लगता है इतने दिन सोये रहने से तुम्हारी स्मृति चौपट हो गई है. तुम्हें अपने युग के बारे में कुछ भी याद नहीं रह गया है. अरे ये लोग विवाह करने जा रहे हैं. देख नहीं रहे हो, इन्होंने अपने चेहरे कपड़े द्बारा छुपा रखे हैं." चीन्तिलाल बोला.
"किंतु ये लोग इस प्रकार भाग क्यों रहे हैं?"
"आओ उन्हीं से पूछ लेते हैं." चीन्तिलाल और चोटीराज लुटेरों की ओर बढ़ने लगे जो एक वैगन के पास पहुँच चुके थे.
3 comments:
साधना रत रहें -रंग लायेगी यह एक दिन !
बहुत ख़ूब
---यदि समय हो तो पधारें---
चाँद, बादल और शाम पर आपका स्वागत है|
रोचक आख्यान, जिज्ञासा बरकरार।
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