Thursday, January 1, 2009

ताबूत - एपिसोड 41

कार अब पूरी तरह रूक गई थी.
"यटिकम तो रूक गई. क्या कारण है?" मारभट ने पूछा.
"शायद दूसरा यल भी थक गया है." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार से उतर गए और इधर उधर देखने लगे. यह एक सुनसान स्थान था, किंतु पूरी तरह नहीं. क्योंकि यहाँ एक बड़ी इमारत दिख रही थी. जो शायद कोई फैक्ट्री थी. उसकी बाहरी बनावट से ऐसा ही लग रहा था.
"वो देखो, सामने कोई मकान है. आओ हम लोग वहां चलते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे दोनों फैक्ट्री की ओर जाने लगे.
"मेरे तो अब भूख लग रही है. वहां भोजन तो मिलना ही चाहिए." मारभट ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
"आओ चल कर देखते हैं."
फ़िर जैसे ही वे फैक्ट्री के पास पहुंचे, दो पहरेदारों ने उन्हें रोक लिया. तभी अन्दर से दो व्यक्ति निकले और उनमें से एक कहने लगा, "आइये सर, आपका यहाँ स्वागत है. मैं यहाँ का प्रबंधक गुप्ता हूँ. और ये मेरा सहायक रामप्रकाश है." वह इन दोनों को अन्दर ले जाने लगा और उसके सहायक ने पहरेदारों से कहा, "मी.गुप्ता को आज एक फोन काल से मालुम हुआ था की आज कुछ सरकारी अफसर इस फैक्ट्री का निरीक्षण करने आ रहे हैं. उनका विचार है कि ये वही अफसर हैं."

उधर गुप्ता दोनों से कह रहा था, "आइये सर, आपको हमारी फैक्ट्री में कोई अनिमियतता नहीं दिखेगी. यहाँ हम साबुन के अलावा डिटर्जेंट पाउडर और शेविंग क्रीम भी बनाते हैं. हमारी फैक्ट्री अच्छी चल रही है. बस केवल आप अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. आपके मालपानी की हमारी पूरी ज़िम्मेदारी है." अन्तिम वाक्य गुप्ता ने धीरे से कहा था.
"क्या यहाँ कुछ खाने को मिल सकता है?" सियाकरण को बहुत जोरों की भूख लग रही थी.
"अरे क्यों नहीं, क्यों नहीं. सब कुछ आप ही का तो है. बस आप हमारे फेवर में एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. फ़िर आप जो कुछ कहेंगे, हम हाज़िर कर देंगे." गुप्ता सियाकरण की बात का कुछ और ही मतलब समझा.
वे तीनों कुछ देर मौन खड़े रहे फ़िर मैनेजर ही दुबारा बोला, "आइये सर, पहले आप फैक्ट्री का निरीक्षण कर लीजिये." उसने उनको अपने पीछे आने का इशारा किया और वे बिना कुछ समझे उसके पीछे चल पड़े.
फ़िर वह फैक्ट्री दिखाने लगा जहाँ विभिन्न प्रकार के कार्य हो रहे थे. कहीं साबुन बनाया जा रहा था, कहीं मशीन से ठोस साबुन की टिकियाँ काटी जा रही थीं तो कहीं डिटर्जेंट पाउडर बन रहा था. वे लोग घुमते हुए वहां भी पहुंचे जहाँ साबुन की पैकिंग हो रही थी.

"आप स्वयें देख लीजिये, की यहाँ केवल साबुन पैक हो रहा है. हम लोग अफीम इत्यादि का व्यापार बिल्कुल नहीं करते." उसने इन्हें पैकिंग दिखाई.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की तरफ़ देखा. उनकी समझ में मैनेजर की बात बिल्कुल नहीं आई.
"देख क्या रहे हो, एक तुम लो और एक मैं लेता हूँ." सियाकरण ने कहा. और एक टिकिया मुंह में उठाकर रख ली. मारभट ने भी उसकी देखा देखी एक टिकिया मुंह में रख ली.
"यह कैसा भोजन है. इस युग में तो लोग अजीब भोजन करते हैं." सियाकरण ने बुरा सा मुंह बनाया.

1 comment:

seema gupta said...

साबुन की आड़ मे अफीम , क्या गोरख धंधा है रोचक

regards