Wednesday, December 17, 2008

ताबूत - एपिसोड 30

"क्या कोई नया सूत्र हाथ लगा है?" मारभट ने पूछा.
"मैंने ऐसा आविष्कार किया है कि हजारों साल बाद भी लोग मुझे याद रखेंगे. मैंने मनुष्यों को हजारों साल जीवित रहने का सूत्र खोज निकाला है." महान वैज्ञानिक महर्षि प्रयोगाचार्य जी ने रहस्योदघाटन किया.
"क्या? यह कैसे सम्भव है?" मैंने आश्चर्य से कहा.
"मैं विस्तार से समझाता हूँ." प्रयोगाचार्य जी ने कहना शुरू किया, "मानव को मृत्यु प्राप्ति कैसे होती है? पहले मेरे इस प्रश्न का उत्तर दो."
"गुरूजी, आप ही ने हमें बताया है कि मानव शरीर छोटी छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है जो लगातार कार्यरत रहती हैं. कार्य करते करते इनकी क्षमता धीरे धीरे कम होती जाती है. और अंततः ये नष्ट हो जाती हैं. इनका स्थान नई कोशिकाएं लेती हैं और उनके साथ भी यही प्रक्रिया होती है. धीरे धीरे नष्ट होने वाली कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती है और नई कोशिकाओं की उत्पत्ति कम होने लगती है. यही बुढापे की शुरुआत होती है जिसका अंत मनुष्य की मृत्यु पर होता है." मैंने बताया.
"बिल्कुल ठीक. इसी पर मैंने विचार किया कि यदि मानव शरीर में होने वाली समस्त क्रियाओं को रोक दिया जाए तो उसकी कोशिकाओं की क्षमता सदेव बनी रहेगी और वे कभी नष्ट न होंगी."
"किंतु मानव शरीर की क्रियाएँ रोक देने पर वह जीवित कहाँ रहेगा?" मारभट ने पूछा.
"क्रियाएँ रोक देने पर वह मृत ज़रूर होगा, किंतु उसकी यह मृत्यु अस्थाई होगी. क्योंकि उसकी कोशिकाएं पहले की तरह शक्तिशाली बनी रहेंगी. मेरी एक विशेष प्रक्रिया उन कोशिकाओं को दोबारा सक्रिय कर देगी. मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि यह सब कैसे होगा."
'महर्षि प्रयोगाचार्य ने हम चारों को साथ लिया और एक यटिकम पर बैठकर जंगल की तरफ़ बढ़ने लगे.' सियाकरण हजारों साल पुरानी दास्तान सुना रहा था जिसे प्रोफ़ेसर मुंह खोलकर ऑंखें फाड़े हुए सुन रहा था.
"एक मिनट!" प्रोफ़ेसर ने टोका, "यह यटिकम क्या बला है? "
"यटिकम एक विशेष डिब्बानुमा रचना थी जिसके नीचे गोल गोल चक्के लगे होते थे. इसे दो यल मिलकर खींचते थे. उसपर बैठकर हम एक जगह से दूसरी जगह प्रस्थान करते थे."
"समझा!" प्रोफ़ेसर ने गहरी साँस लेकर सर हिलाया, "हमारी भाषा में तुम्हारे यटिकम को बैलगाडी कहते है. और यल को बैल कहते हैं."
"हो सकता है." सियाकरण ने आगे कहना शुरू किया, "महर्षि प्रयोगाचार्य जी हम चारों को लेकर जंगल पहुंचे और एक पहाडी में बनी सुरंग में प्रवेश कर गए. हमने देखा, गुरूजी ने पहाडी के अन्दर बहुत बड़ी प्रयोगशाला बना रखी थी, जिसमें बहुत सारे कमरे थे. यह सभी कमरे एक दूसरे से सुरंगों द्वारा जुड़े थे. वो हमें लेकर एक कमरे में पहुंचे जहाँ लोहे के चार दैत्याकार संदूक रखे थे."

2 comments:

Arvind Mishra said...

वाह बढियां जा रही है स्टोरी !

seema gupta said...

मैंने मनुष्यों को हजारों साल जीवित रहने का सूत्र खोज निकाला है."

"" बाप रे बाप कोई तो दया खाओ इस धरती माता पर .."

Regards