"आखिरकार हम लोग खजाने तक पहुँच ही गए." शमशेर सिंह ने एक गहरी साँस ली.
"इतने खजाने में तो हम लोग पूरी दुनिया खरीद सकते हैं." रामसिंह ने कहा.
"मैं तो सबसे पहले ताजमहल खरीदूंगा. मुझे वह बहुत पसंद है." शमशेर सिंह ने अपनी भारी भरकम तोंद के साथ उछलने की कोशिश की.
"अब हमें देर न करते हुए इन बक्सों को खोलना चाहिए. पता तो चले कि इनमें हीरे भरे हैं या मोती."
फ़िर तीनों ने बक्सों को खोलने की तरकीबें करनी शुरू कर दीं. अजीब प्रकार के बक्से थे, जिनमें कोई कुंडा नहीं दिखाई दे रहा था. काफ़ी देर की कोशिशों के बाद भी तीनों उन्हें खोलने में नाकाम रहे और पसीना पोंछते हुए दूर खड़े हो गए.
"यार प्रोफ़ेसर, क्या हम लोगों को खजाने की झलक देखने को नहीं मिलेगी?" शमशेर सिंह ने मायूसी से पूछा.
"मैं तो कब से अपने डाउन सेल वाली टॉर्च लिए खड़ा हूँ कि कब बक्सा खुले और मैं अपनी टॉर्च की रौशनी में उसका दीदार करुँ." रामसिंह ने हाथ में पकड़ी टॉर्च झुलाते हुए कहा.
"अब तो मुझे भी गुस्सा आने लगा है. जी चाहता है कि पत्थर मार मार कर इन बक्सों का हुलिया बिगाड़ दूँ." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने एक बड़ा पत्थर उठाया और निशाना लगाकर जोरों से एक बक्से के ऊपर फेंका. पत्थर बक्से से टकराकर वहीँ ज़मीन में गडे एक कीलनुमा पत्थर से टकरा गया.
दूसरे ही पल कीलनुमा पत्थर ज़मीन में धँसने लगा. फ़िर प्रोफ़ेसर वगैरा ने हैरत से उन बक्सों को देखना शुरू कर दिया जो आटोमैटिक ढंग से अपने आप खुलने लगे थे.
"शानदार. यानी यह पत्थर उन बक्सों को खोलने का स्विच था. " प्रोफ़ेसर ने प्रशंसात्मक भाव से उस कीलनुमा पत्थर को देखा.
"चलो रामसिंह. अब हम भगवान् का नाम लेकर अपने खजाने का दीदार करते है." शमशेर सिंह आगे बढ़ा और उसके पीछे पीछे दोनों दोस्त भी बक्से के करीब पहुँच गए. और बेताबी के साथ अन्दर मौजूद सामान के दीदार को झुक गए.
लेकिन वहां खजाने जैसी कोई चीज़ नहीं थी.
चारों बक्सों में चार आदमकद लाशें मौजूद थीं. जिनके चेहरे बर्फ की तरह सफ़ेद पड़ चुके थे. उनके शरीर पूरी तरह सही सलामत थे और उनपर गर्दन से पैर तक सफ़ेद लिबास मौजूद था.
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चारों बक्सों में चार आदमकद लाशें मौजूद थीं. जिनके चेहरे बर्फ की तरह सफ़ेद पड़ चुके थे. उनके शरीर पूरी तरह सही सलामत थे और उनपर गर्दन से पैर तक सफ़ेद लिबास मौजूद था.
"oh my god, again a great suspense and mystry.."
regards
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