Wednesday, January 14, 2009

कुछ वैज्ञानिक परिकल्पनाएं (1)

इस ब्लॉग की यह सौवीं पोस्ट साइंस फिक्शन पर आधारित न होते हुए भी उससे सम्बंधित है. मेरा यह लेख जून २००१ में आविष्कार में प्रकाशित हुआ था. आशा है पाठकों को यह पसंद आएगा.
-जीशान जैदी


परिकल्पनाएं आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का आधार हैं. आज का विज्ञान जिन सिद्धांतों पर टिका हुआ है वे सिद्धांत प्रारम्भ में परिकल्पनाओं के रूप में जन्मे थे. जब उन परिकल्पनाओं को प्रयोगों और गणितीय रूप में परखा गया और उनकी सत्यता सिद्ध हुई तो वे सिद्धांत बने. प्रमुख परिकल्पनाएं और सिद्धांत जिन पर आधुनिक विज्ञानं की नींव टिकी है उनमें शामिल हैं हाइगेन्स की तरंग संचरण सम्बन्धी परिकल्पना, प्लैंक की प्रकाश फोटोन की परिकल्पना, आइन्स्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत, गुरुत्वीय बल के कारक ग्रैविटान की परिकल्पना, ब्लैक होल की परिकल्पना इत्यादि. इनमें से बहुतों को सिद्धांत के रूप में मान्यता मिल चुकी है और शेष की पुष्टि न होने के कारण मात्र परिकल्पना के रूप में लिया जाता है. आशा यह की जाती है कि भविष्य में इनकी सत्यता या असत्यता सिद्ध की जा सकेगी.

आधुनिक विज्ञान में अनगिनत प्रकार की परिकल्पनाएं होने के बावजूद ऐसे अनगिनत क्षेत्र हैं जहाँ की घटनाओं या संभावित घटनाओं के बारे में व्याख्या करने के लिए किसी प्रकार की कोई परिकल्पना नहीं की गई है. वे क्षेत्र अभी तक वैज्ञानिक प्रगति से अछूते हैं और विज्ञान को वहां प्रवेश करने के लिए कल्पना रुपी द्वार की सख्त आवश्यकता है. ऐसी ही कुछ परिकल्पनाएं यहाँ प्रस्तुत हैं :

पहली परिकल्पना समय (टाइम) के बारे में है. कुछ विज्ञान कथाओं में टाइम मशीन की संकल्पना मिलती है. जिसमें एक मशीन के सहारे कोई व्यक्ति भूत या भविष्य में पहुँच जाता है. वहां वह उन घटनाओं का अंग बन जाता है, जो उस समय घटित हो रही हैं. प्रश्न उठता है क्या इस तरह की मशीन बनाना संभव है? इसके लिए एक और प्रश्न पर विचार करना होगा. मान लिया कोई व्यक्ति भूतकाल में जाकर अपने दादा की हत्या कर देता है. स्पष्ट है की अब उसका पैदा होना भी असंभव है. लेकिन अगर वह पैदा नहीं होगा तो वर्तमान में उसका अस्तित्व भी नहीं रह जायेगा. यह विरोधाभास सिद्ध करता है की टाइम मशीन का बनना असंभव है. लेकिन अगर हम और गहराई से विचार करें? आइंस्टाइन के द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण के अनुसार पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है.(E=mc2) पदार्थ क्या है? स्पेस में पदार्थ वह आकृति है जो चार विमाओं द्वारा निर्धारित होती है. ये चार विमायें हैं, लम्बाई, चौडाई, गहराई और समय.

दूसरे शब्दों में यदि कोई वस्तु चार विमायें रखती है तो उसे ऊर्जा में बदला जा सकता है. अगर इस ऊर्जा में थोडी कमी करके या बढोत्तरी करके वापस पदार्थ में बदला जाए तो तो उत्पन्न पदार्थ का द्रव्यमान मूल पदार्थ से कम या ज़्यादा होगा. इसी दिशा में यदि विचारों को बढाया जाए तो टाइम मशीन का बनना संभव है. इसके लिए समय को ऊर्जा में बदल कर उस ऊर्जा में कमी या बढोत्तरी करनी होगी. और फ़िर उसे वापस समय में परिवर्तित करना पड़ेगा. उस वक्त वह समय भूत या भविष्य में परिवर्तित हो जायेगा. लेकिन समस्या यह है की कोई वस्तु तभी ऊर्जा में बदल सकती है जब उसमें चारों विमायें हों. जबकि समय मात्र एक विमा है. यहाँ पर यह निष्कर्ष निकल सकता है की समय को वास्तविक ऊर्जा में तो नहीं बदला जा सकता, हाँ काल्पनिक ऊर्जा में ज़रूर बदला जा सकता है. और इस तरह भूत या भविष्य में पहुँचा जा सकता है. लेकिन ठीक उसी प्रकार मानो वहां पहुँचने वाला व्यक्ति कोई सपना देख रहा हो. सपने में ही वह व्यक्ति भूत या भविष्य की घटनाएं देख पायेगा लेकिन उनमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर पायेगा. इस प्रकार उपरोक्त विरोधाभास दूर हो जाता है.
--------cont.

8 comments:

रंजू भाटिया said...

रोचक लगी यह जानकारी

Arvind Mishra said...

सौवीं पोस्ट पर बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं !

Udan Tashtari said...

शतक वीर को प्रणाम.

सौवीं पोस्ट की बधाई एवं शुभकामनाऐं.

समयचक्र said...

रोचक जानकारी...सौवीं पोस्ट की ..बधाई

zeashan haider zaidi said...

Shubhkaamnaaon ke liye sabhi mitron ka shukriya

Vinay said...

मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ,

आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूँ, आकर अच्छा लगा आगे आता रहूँगा

मैंने तकनीकि प्रश्नोत्तरी ब्लॉग 'तकनीक दृष्टा तैयार किया है, समय हो तो अवश्य पधारें:

---ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है? अवश्य अवगत करायें:
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

Vivek Gupta said...

ये भी सही है | सुंदर जानकारी |

Yogi said...

भूतकाल को देख पाना फिर भी मान लेते हैं कि शायद संभव हो पाए
मगर भविष्य को देख पाना कैसे मुमकिन होगा ?

ज़रा इस पर भी एक उदहारण के ज़रिये रौशनी डालिए.