Friday, July 17, 2009

प्लैटिनम की खोज - एपिसोड : 12

‘‘मेरी समझ में नहीं आया मि0 जमशेद कि आपने शमशेर सिंह जैसे बेवकूफ को क्यों चुना?’’ लाल टाई वाले ने शमशेर सिंह के जाने के बाद चेयरमैन से पूछा।
‘‘जल्दी ही आपको पता चल जायेगा मि0 राजेश्वर। जब मैं आपको पूरी योजना के बारे में बताऊंगा। बल्कि अब मैं शमसेर सिंह के साथ साथ उसके दोस्तों को भी शामिल कर रहा हूं। क्योंकि उसकी बातों से मैंने अनुमान लगाया है कि उसके दोस्त भी उसी की तरह मूर्ख हैं।’’ मि0 जमशेद ने कहा।

‘‘ओ-के- मि0 जमशेद। आप हमारे प्रोजेक्ट के बारे में अच्छी तरह डिसीजन ले सकते हैं। क्योंकि आप ही हमारे चीफ हैं।’’ इस बार नीले स्वेटर वाले ने कहा, ‘‘किन्तु आप उसके दोस्तों को किस प्रकार तैयार करियेगा?’’
‘‘मुझे पूरा विश्वास है मि0 शोरी कि उसके दोस्तों को भी उसकी तरह एडवेंचर का शौक होगा। इसलिए जब हम इस प्रकार का प्रपोजल देंगे तो वे तुरंत तैयार हो जायेंगे।’’ मि0 जमशेद कुछ क्षणों के लिए रुके फिर दोबारा कहना शुरू किया, ‘‘अब हम आगे की प्लानिंग करते हैं।

सबसे पहले उन दोनों के पास जाकर अपनी आफर देनी है। मि0 राजेश्वर, आप रामसिंह के पास जायेंगे और मि0 शोरी आप देवीसिंह के पास। उन्हें इस प्रकार अपनी बात समझानी है।’’
उसके बाद काफी देर तक तीनों व्यक्तियों के बीच विचार विमर्श होता रहा।
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शमशेर सिंह जब घर पहुंचा तो वहाँ प्रोफेसर और रामसिंह पहले से मौजूद थे।
‘‘तुम लोग अंदर कैसे आ गये? दरवाजा तो बन्द था।’’ शमशेर सिंह ने चौंक कर पूछा।
‘‘पता नही। हम लोग जब यहां पहुंचे तो दरवाजे के दोनों पट पूरे खुले हुए थे और एक बिल्ली किचन में घुसी कुछ खा रही थी।’’ रामसिंह की बात सुनते ही शमशेर सिंह तेजी से किचन की ओर भागा। उसके पीछे रामसिंह और प्रोफेसर भी दौड़े।

‘‘ओह मेरी खीर।’’ शमशेर सिंह सर पर हाथ मारकर चीखा, ‘‘कमबख्त बिल्ली पूरी चट कर गयी। सुबह बनाकर रखी थी, सोचा था इंटरव्यू के बाद आकर खाऊंगा।’’
‘‘च---च!’’ प्रोफसर ने सहानुभूति जताई, ‘‘लेकिन तुमने दरवाजा खुला क्यों छोड़ दिया था?’’

‘‘दरवाजा तो मैंने बन्द कर दिया था। कहीं यह तुम लोगों की करतूत तो नहीं?’’ शमशेर सिंह ने दोनों को घूरा।
‘‘भला हमें क्या मालूम कि तुमने खीर बनाई है। तुम अच्छी तरह याद करो कि इंटरव्यू में जाने से पहले तुमने दरवाजा बन्द किया था या नहीं।’’

शमशेर सिंह ने कुछ देर अपने दिमाग पर जोर देने का प्रयत्न किया, फिर बोला, ‘‘पता नहीं। मुझे कुछ ध्यान नहीं है। हो सकता है। क्योंकि मैं उस समय बहुत जल्दी में था।’’

‘‘खैर छोड़ो इन बातों को। ये बताओ आज के इंटरव्यू में क्या हुआ?’’ रामसिंह ने पूछा और शमशेर सिंह को याद आ गया कि उसका चयन हो गया है। वह तुरंत रामसिंह से लिपट गया, ‘‘रामसिंह! प्रोफेसर!’’ वह चिल्लाया।
‘‘क्या हुआ? क्या वहां से ध्क्को मारकर निकाले गये हो?’’ प्रोफेसर ने घबराकर पूछा।
‘‘तुम्हारे मुंह में कुनैन की गोली। हमेशा गलत बात मुंह से निकालते हो।’’ शमशेर सिंह ने क्रोधित स्वर में कहा, ‘‘अरे मैं कामयाब हो गया। मुझे नौकरी मिल गयी।’’

‘‘अरे वाह!’’ प्रोफेसर भी शमशेर सिंह से लिपट गया। फिर गंभीर होंकर बोला, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने तुम्हें बेवकूफ बनाया हो?’’

2 comments:

अभिषेक मिश्र said...

Shamsher Singh ki khushi mein ham bhi shamil hain.

Arvind Mishra said...

ha ha ha